समाज में फैली हुई अनेक कुरीतियां इस गौरवशाली समाज के साथ कलंक बनी हुई है जाति में भेदभाव और Dahej Pratha के कारण विश्व में हमारा सर झुका जा रहा है समय-समय पर इन कुरीतियों को मिटाने का प्रयास समाज सुधारक को एवं नेताओं द्वारा किए जाते हैं परंतु इसका समूल नाश संभव नहीं हो सका दहेज प्रथा जैसी कोई दिया दिन प्रतिदिन भयानक रूप लेती जा रही है।
समाचार पत्रों में छपे विस्तृत विवरण पढ़कर हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं सास ने बहू को जलाकर मार डाला दहेज लोभी पिता ने अपने बेटे की बरात बिना शादी किए लौटाई स्टॉप फट जाने से मृत्यु आदि । दहेज का अर्थ है
विवाह के समय दी जाने वाली वस्तुएं जोगी दुल्हन पक्ष वालों की तरफ से वर पक्ष वालों को दी जाती है माता पिता बेटी की शादी में स्नेह भाव से बेटी को कुछ वस्तुएं भेंट करते हैं
कि उनका अपनी बेटी के प्रति प्रेम भाव होता है जब उन्हें छोड़कर पति के पास जा रही होती है , यह प्रथा अत्यंत प्राचीन है । परंतु धीरे-धीरे यह प्रथा दहेज प्रथा के रूप में विकट बन चुकी है ।
Dahej Pratha का आरम्भ कैसे हुआ ?
दहेज प्रथा जो एक सात्विक प्रथा थी आज परिवारों की प्रतिष्ठा बन गई है पहले जब बेटी घर से विदा होती थी तो उसका अपने पितृ गृह पर संपूर्ण अधिकार समाप्त हो जाता था
वह अपने पिता की क्षमता का कुछ भाग लेकर अपने पति के घर चली जाती थी बेटी अपने घर में सुख और समृद्धि का सूचक बने रहे और पिता के घर से खाली हाथ ना जाए इसलिए वह अपने साथ वस्त्र भूषण बरतन तथा अन्य पदार्थ ले जाती है ।
धीरे-धीरे कन्या की श्रेष्ठता सील सौंदर्य से नहीं बल्कि उसे मिलने वाले दहेज से आंखें जाने लगी वर की खुलेआम बोली लगने लगने लगी ।
आजकल वर्क पक्ष के लोग विवाह से पहले ही दहेज में मिलने वाली सामान की सूची बना लेते हैं फिर वैसा ना होने पर विवाह तोड़ने या तलाक देने और लड़की को जिंदा जला देने से पीछे नहीं हटते ।
वर पक्ष की बढ़ती लोभी प्रकृति को पूरा करने के लिए कन्या पक्ष के निर्धन लोगों को कर्ज लेना पड़ता है अपनी संपत्ति बेचनी पड़ती है ताकि उनकी बेटी अपने घर में खुश रहे लेकिन इतना होने पर भी वर पक्ष की मांग कम नहीं होती बल्कि बढ़ती जाती है ।
निष्कर्ष
कन्या को भी अपने पैरों पर खड़ा करके इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
लड़की यदि आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र होगी तो यह बात भी दहेज प्रथा को बहुत हद तक विकट बनने से रोकेगी । दहेज प्रथा हमारे समाज का एक बहुत बड़ा दर्द है जो भी हमारे समाज को दिन प्रतिदिन भयभीत किया जा रहा है जिसके कारण कन्याओं को समाज में प्यार की जगह लोगों की यातनाएं सहनी पड़ रही है
समाज में ऐसी अहिंसा ऐसे भेदभाव कन्याओं को बहुत दर्द पहुंचाती है । इसी कारण हमारा समाज सभ्य नहीं बल्कि असभ्यताओं की ओर बढ़ता जा रहा है ।
नर को नारी से अधिक समझना समाज की भूल है इसलिए ऐसी प्रथाओं को जमकर विरोध करना चाहिए और लोगों को जागरूक करना चाहिए था जैसे क्लाइंट को समाज के माथे पर ना लगने दे इसके लिए मैं बहुत प्रयत्न करना चाहिए और हमें खुद से प्रयास करना चाहिए कि हम खुद ही लोगों को जागरूक करें ।
तो आज के लिए इतना ही अगर आपको हमारे यह निबंध पसंद आया तो आप भी दहेज प्रथा को रोकने में समाज की मदद करें । यहां पर लिखे गए निबंध आपको अगर निबंध लगते हैं तो बहुत दुख की बात है क्योंकि यह एक निबंध नहीं है यह दुःखी और लाचार यातनाओ से भरी नारी की आवाज है, दर्द है ।